नमस्कार , खम्माघणी,
यह तो सभी जानते है की अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा की स्थापना 19 अक्टूबर 1897 में राजा बलवंत सिंह जी अवागढ़ के द्वारा की गई थी पर यह बहुत ही कम लोग जानते है की इस मातृ रुपी संस्था की स्थापना किन परिस्थिओ में हुई थी ।
बात उस समय की है जब अंग्रेज भारतीयों को विवश कर धर्म परिवर्तन करा रहे थे और देशभर में हिंसा, मार-काट मचा रखी थी, तब कालाकंकर प्रतापगढ़ के राजा हनुमान सिंह जी के नेतृत्व में क्रांति के प्रभाव में ‘रामदल’ नाम से क्लब के रूप में क्षत्रिय महासभा के सूत्रपात को जन्म दिया।
इस ‘राम दल’ के नाम से हिंदुस्तानियों ने अंग्रेजो के खिलाफ आंदोलन छेड़ा जिसमें सैकड़ो क्रांतिकारी शहीद हुए, कुछ को गोली और बारुद से उड़ा दिया गया और बाकिओ को पेड़ों पर फांसी पर लटका दिया गया। इस क्रांति के असफलता पर क्षत्रियो ने रामदल को विघटित कर उसके स्थान पर 1960 में क्षत्रिय हितकारणी सभा का गठन किया, पर यह राजा, राज दरबार और उनके सहयोगिओं का संगठन आम बनकर रह गया, इनके कई साथी अंग्रेजों के शुभचिंतक भी थे, इस कारण इससे क्रांतिकारियों के परिवार द्वारा दूरी बनाकर रखी गई।
इन तमाम विसंगतियों को देख कर आवागढ़ के राजा बलवंत सिंह जी के नेतृत्व में तत्काल समिति के प्रतिनिधि ठाकुर उमराव सिंह जी कोटला, राजा उदय प्रताप सिंह भिंगा तथा अन्य क्षत्रियों ने क्षत्रिय हितकारिणी सभा को बदलकर इसका नाम करण ‘क्षत्रिय महासभा’ रखस गया।
इसी अंतराल में संयुक्त प्रांत आगरा और अवध के प्रदेश में 19 अक्टूबर 1897 में सोसायटी अधिनियम के अंतर्गत राजधानी लखनऊ में सभा का पंजीकरण हुआ अतः राजा बलवंत सिंह जी आवागढ़ अध्यक्ष निर्वाचित हुए इसका पंजीकृत कार्यालय लखनऊ में तथा प्रधान कार्यालय मथुरा में रखा गया ।
9 सितंबर 1986 में महाराजा लक्ष्मण सिंह जी डूंगरपुर के अध्यक्षताकाल में क्षत्रिय महासभा के नाम में पुनरावृत्ति की गई और इस संस्था को ‘अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा का नाम दिया गया।
यह बड़े गौरव की बात है कि देश की इतिहास में अंग्रेजी हुकुमत होते हुए भी पहली बार इन तीनों राजाओं ने अपने साहस का परिचय देते हुए उन विषम परिस्थितियो मे छत्रिय राजपूतो के सामाजिक शैक्षणिक विकास की समस्याओं के निराकरण के लिए इस संगठन अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा की स्थापना की । अंग्रेजी हुकुमत के सामने उस समय बड़े-बड़े राजा- महाराजाओ की संगठन बनाने का साहस नहीं कर पाते थे उस समय उन्होंने राजपूतों की शैक्षणिक विकास और सामाजिक उत्थान के लिए इस संगठन को बनाया और उसका प्रचार प्रसार कर देश में शिक्षा एवं सामाजिक उत्थान के लिए जागृति अभियान चलाया।
यह बड़े हर्ष स्वाभिमान का विषय है कि इन 3 महापुरुषों के द्वारा बनाया गया संगठन इतने बड़े वट वृक्ष का रूप ले चुका हे कि देश के सभी प्रांतो के जिले में यह संगठन विद्यमान है।
शैक्षणिक विकास के लिए योगदान की बात करें तो आज हमारा समाज राजा बलवंत सिंह जी महाविद्यालय आगरा और उदय प्रताप कॉलेज बनारस के रूप में देख रहा है उनका समाज ने लाभ भी लिया जिसके लिए क्षत्रिय समाज उनका हमेशा ऋणी रहेगा और अधिकांश देश के पुराने शिक्षित राजपूत इन्हीं दोनों कॉलेजों से शिक्षा प्राप्त की है, इन महाविद्यालय का राजपूतों के शैक्षणिक विकास में आज भी योगदान है।
इस संगठन को बनाने के लिए तीन महान पुरुषो स्वर्गीय राजा बलवंत सिंह जी अवागढ़ जादोन राजपूत, ठाकुर उमराओ सिंह जी कोटला जादोन राजपूत एवं राजा उदय प्रताप सिंह जी भिनगा बिसेन राजपूत को शत-शत नमन।
जय क्षात्र धर्म , जय राजपुताना , जय हिन्द।